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जानिए इस वर्ष सोमवती अमावस्या एवं महत्व

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सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं। ऐसा संयोग साल में 2 या कभी-कभी 3 बार भी बन जाता है। इस अमावस्या को हिन्दू धर्म में पर्व कहा गया है। इस दिन पूजा-पाठ, व्रत, स्नान और दान करने से कई यज्ञों का फल मिलता है। सोमवती अमावस्या पर तीर्थ स्नान करने से कभी खत्म नहीं होने वाला पुण्य प्राप्त होता है महाभारत के दौरान भीष्म ने युधिष्ठिर को बताया है महत्व महाभारत में भीष्म ने युधिष्ठिर को इस दिन का महत्व समझाते हुए कहा था कि, इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने वाला मनुष्य समृद्ध, स्वस्थ्य और सभी दुखों से मुक्त होगा। ऐसा भी माना जाता है कि स्नान करने से पितर भी संतुष्ट हो जाते हैं।  लेकिन कोई तीर्थ स्नान न कर सके तो घर पर ही पानी में गंगाजल की कुछ बूंदे मिलाकर नहाने से भी इसका पुण्य फल मिलता है। इस वर्ष 8 अप्रैल 2024 को चैत्र सोमवती अमावस्या 2 सितंबर 2024 को भाद्रपद सोमवती अमावस्या एवं 30 दिसंबर 2024 को सोमवती अमावस्या घटित होने जा रही है वर्ष में यह सोमवती अमावस्या तीन बार घटित होगी  ध र्म एवं ज्योतिष से संबंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए आप हमारे यूट्यूब चैनल ध

दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त 2023

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ज्योतिर्विद पंडित कपिल जोशी ने बताया कि शास्त्र के अनुसार इस वर्ष विक्रम संवत्सर 2080   कार्तिक मास कृष्ण पक्ष स्वाति नक्षत्र तुला राशि  चंद्रमा अमावस्या तिथि 12 नवंबर 2023 दिन रविवार को हर्षोल्लास के साथ दीपावली का पर्व मनाया जाएगा श्री महालक्ष्मी पूजन एवं दीपावली का महापर्व कार्तिक अमावस में प्रदोष काल एवं अर्धरात्रि व्यापिनी हो तो विशेष रूप से शुभ होती है प्रस्तुत वर्ष कार्तिक अमावस 12 नवंबर रविवार 2023  को दोपहर 14 घंटे 45 मिनट बाद प्रदोष कॉल   निशीथ काल   महा निशीथ काल व्यापिनी   दीपावली पर 12 नवंबर रविवार 2023  के दिन ही होगा संध्याकाल दीपावली पर स्वाति नक्षत्र सौभाग्य योग तुला राशि चंद्र तथा अर्धरात्रि व्यापिनी अमावस्या युक्त होने से विशेष एवं शिलांग्या रहेगी   दीपावली दिन के कृत्य इस दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दैनिक कृतियों से निवृत हो पितृ गण तथा देवताओं का पूजन करना चाहिए संभव हो तो दूध दही और घृत से पितरों का पूजन करना चाहिए यदि संभव हो तो एक भक्त उपवास कर गोधूलि बेला में अथवा   2 अथवा 5 स्थिर लग्न में  श्री गणेश कलश  मातृका एवं गृह पूजन पूर्वक भगवती लक्

64 योगिनी माता जी के विषय में विशेष जानकारी

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चौंसठ योगिनी मंदिर में कौन कौन सी योगिनियां हैं?  चौसठ योगिनी मंदिर या चौंसठ योगिनियां प्रायः आदिशक्ति मां काली का अवतार या अंश होती हैं। घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते हुए माता ने उक्त 64 अवतार लिए थे। यह भी माना जाता है कि ये सभी माता पार्वती की सखियां हैं। इन 64 देवियों में से 10 महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। ये सभी प्रायः आद्य शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतारी अंश हैं। कुछ लोग कहते हैं कि समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं।  समस्त योगिनियां अलौकिक शक्तिओं से सम्पन्न हैं तथा इंद्रजाल, जादू, वशीकरण, मारण, स्तंभन इत्यादि कर्म इन्हीं की कृपा द्वारा ही सफल हो पाते हैं। प्रमुख रूप से आठ योगिनियों के नाम इस प्रकार हैं: 1. सुर-सुंदरी योगिनी,  2. मनोहरा योगिनी,  3. कनकवती योगिनी,  4. कामेश्वरी योगिनी,  5. रति सुंदरी योगिनी,  6. पद्मिनी योगिनी,  7. नतिनी योगिनी और  8. मधुमती योगिनी चौंसठ योगिनियों के नाम :-  1.बहुरूप, 2.तारा, 3.नर्मदा, 4.यमुना, 5.शांति, 6.वारुणी 7.क्षेमंकरी, 8.ऐन्द्

17 जून से शनिदेव होंगे वक्री ! जानिए आपकी राशि पर इसका क्या प्रभाव रहेगा ?

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 ज्योतिषाचार्य पंडित  कपिल जोशी जी ने बताया कि शास्त्रअनुसार शनि ग्रह 17 जनवरी से ही कुंभ राशि में गोचर कर रहे हैं। इस दौरान 30 जनवरी को अस्त होकर 6 मार्च को उदय हुए थे। अब वे  17 जून 2023  की रात 10 बजकर 48 मिनट पर अपनी वक्री चाल चलेंगे। 4 नवंबर 2023 को प्रातः: 8:26 बजे तक वक्री रहकर एक बार पुनः मार्गी हो जाएंगे। इस वर्ष शनि के राशि परिवर्तन करने से 12 राशियों पर  इसका  प्रभाव पड़ेंगे, लेकिन 2023 में जून में शनि विपरीत चाल चलेंगे,  17 जून  को शनि वक्री होंगे, शनि के वक्री होने से कई राशियों के लिए कुछ अच्छा तो कुछ बुरे का भी सामना करना पड़ेगा। शनि वक्री अवस्था में 4 नवंबर तक रहेंगे और फिर मार्गी होंगे। शनिदेव बकरी होने से बलशाली हो जाता है और उसका प्रभाव राशियों पर बहुत बढ़ जाता है।  जिन राशियों पर इसका दुष्प्रभाव पड़ता है उसके जातकों को मानसिक और शारीरिक परेशानी झेलनी पड़ती है । ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी ग्रह-नक्षत्रों में शनि सबसे धीमी गति से चलने वाले ग्रह माने जाते हैं। शनि की उल्टी यानी वक्री चाल का सभी 12 राशियों पर प्रभाव पड़ेगा । जानें किन राशियों के लोग रहें स

चैत्र नवरात्रि कब आरंभ होंगे जाने विशेष योग

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ज्योतिषाचार्य पंडित कपिल जोशी जी ने बताया कि शास्त्रअनुसार इस वर्ष चैत्र नवरात्रि विक्रमी संवत सर नल प्रर्यंत पिंगल 2080 शक 1945  दिन बुधवार उत्तराभाद्रपद नक्षत्र शुक्ल योग किंतुसब करण तथा मीन राशि स्थित चंद्रमा में 22 मार्च 2023 ईस्वी को चैत्र नवरात्रि का आरंभ हो रहा है इस साल चैत्र नवरात्रि पर मां अंबे नाव पर सवार होकर आ रही है. इसे देवी दुर्गा का शुभ वाहन माना जाता है. कहते हैं जब पृथ्वी पर माता नाव की सवारी कर आती हैं तो भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है. 9 दिन में किए हर काम में सफलता मिलती है. माता की सवारी वार पर निर्भर करती है. चैत्र नवरात्रि के पहले दिन यानी 22 मार्च 2023 को बुधवार है. बुधवार पर मां का आगमन नौका पर होता है. वहीं देवी दुर्गा का विसर्जन 31 मार्च 2023 को होगा, इस दिन शुक्रवार होने से मां डोली पर सवार होकर प्रस्थान करेंगी. सिंह के अलावा मां अंबे का डोली, नाव, घोड़ा, हाथी भी वाहन है. इस साल चैत्र नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर 22 मार्च 2023 को सुबह 06:29 से सुबह 07:39 तक घटस्थापना का शुभ मुहूर्त है. नवरात्रि में मां दुर्गा 9 दिन तक

दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त

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ज्योतिर्विद् पंडित कपिल जोशी ने बताया की शास्त्रानुसार  इ स वर्ष विक्रमी संवत सर 2079 शक 1944 कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे  श्री महालक्ष्मी पूजन एवं दीपावली का महापर्व कार्तिक अमावस्य में प्रदोष काल एवं अर्धरात्रि व्यापिनी हो तो विशेष रूप से शुभ होती है लक्ष्मी पूजन दीप दान आदि के लिए प्रदोष काल की विशेषता शुभ माना गया है प्रस्तुत वर्ष कार्तिक अमावस 24 अक्टूबर सोमवार 2022 ईस्वी को साया 17 घंटे 28 मिनट बाद प्रदोष निशथ तथा महानिशथ  व्यापिनी होगी अतः दीपावली पर्व 24 अक्टूबर सोमवार 2022 इसवी  के दिन ही होगा साया दीपावली पर्व चित्रा नक्षत्र कन्या राशि  तथा अर्ध रात्रि व्यापिनी अमावस्या युक्त होने से शुभ एवं लाभप्रद रहेगी प्रदोष काल 24 अक्टूबर 2022 को  सूर्य अस्त के उपरांत 2 घंटे 36 मिनट तक यानी की रात्रि के 8:19 तक प्रदोष काल व्याप्त रहेगा इस दिन अमावस्या तिथि 24 अक्टूबर को साईं 5:28 पर प्रारंभ हो रही है शाम को 6:53 तक मेष लग्न है प्रदोष काल आरंभ होते ही चर की चौघड़िया शाम 19:20 तक रहेगी  चर  की चौघड़िया में ही श्री गणेश पूजन गणपति पूजन लक्ष्मी पूजन आरंभ कर लेना चाहिए इसी काल में द

करवा चौथ की कथा एवं पूजन का शुभ मुहूर्त कब

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ज्योतिर्विद् पंडित कपिल जोशी ने बताया की शास्त्रानुसार  इ स वर्ष विक्रमी संवत सर 2079 शक 1944 कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे बृहस्पतिवार को चतुर्दशी तिथि कृतिका नक्षत्र सिद्धि योग एवं बब करण 13 अक्टूबर 2022 ईस्वी को करवा चौथ का व्रत सुहागन स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए श्रद्धा भावना के साथ मनाया जाएगा इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए शिव गोरा एवं भगवान गणपति जी की विषकर पूजा अर्चना करती हैं प्रातः काल सभी औरतें अपने घरों में तारों की छांव में स्नान आदि से निर्मित होकर ज्योति प्रज्वलत करने के उपरांत गणेश जी एवं माता गौरी की पूजा करके व्रत का आरंभ करती हैं एवं अपरांत काल में सभी सुहाग ने एक जगह एकत्रित होकर करवा चौथ की कथा का श्रवण करती है एवं अपने-अपने करवा का पूजन विधि विधान से करती हैं रात्रि काल में 8:35 पर चंद्रदेव के उदय होते ही चंद्रमा को जल अर्पण करने के उपरांत अपने पतिदेव के दर्शन छलनी में करती हैं तथा उसके बाद ही भोजन ग्रहण करती हैं ऐसी प्रथा हमारे भारत में सदियों से चली आ रही है  करवा पूजन एवं कथा करने का शुभ मुहूर्त 13 अक्ट

जाने बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती पूजन का शुभ मुहूर्त

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ज्योतिषाचार्य पंडित कपिल जोशी ने बताया की इस वर्ष विक्रमी संवत सर 2078 को माघ मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी का पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा यह पर्व 5 फरवरी 2022 दिन शनिवार को मनाया जाएगा इस दिन विशेष रुप से विद्या की देवी माता सरस्वती जी का पूजन किया जाता है विशेष रुप से हमारे शहर में संगरूर में बसंत पंचमी का उत्सव बड़ी धूमधाम से पतंग उड़ा कर मनाया जाता है बच्चे सुबह से ही अपने घरों की छतों पर पतंग उड़ाने का आनंद लेते हैं यह गीत संगीत के साथ साईं काल तक चलता रहता है  माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन विद्या और कला की देवी सरस्वती जी की पूजा का विधान है। बसंत पंचमी से वसंतोत्सव की शुरुआत हो जाती है। ये वसंतोत्सव होली तक चलता है । इस उत्सव को मदनोत्सव के रूप में भी मनाया जाता है । इस उत्सव की शुरुआत रतिकाम महोत्सव से होती है। इस साल बसंत पंचमी का पर्व 5 फरवरी 2022 को मनाया जाएगा शास्त्रों के अनुसार बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती जी का आगमन हुआ था इसलिए बसंत पंचमी को विद्या की देवी माता सरस्वती जी के दि

जाने ! दीपावली पर श्रीमहालक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त

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ज्योतिर्विद् पंडित कपिल जोशी ने बताया की ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को अर्धरात्रि के समय श्री महालक्ष्मी महारानी सद ग्रंथों के घर में जहां तहां विचरण करती हैं इसलिए अपने घर को सब प्रकार से स्वच्छ शुद्ध और सुंदर बना कर और दीपावली एवं दीप मालिका करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं तथा महालक्ष्मी रूप से निवास करती हैं यह अमावस्या प्रदोष काल एवं अर्ध रात्रि मैं हो तो विशेष रूप से शुभ होती है इस वर्ष में विक्रमी संवत सर 2078 कार्तिक अमावस्या 4 नवंबर बृहस्पतिवार प्रातः सूर्य उदय से अर्धरात्रि बाद 26 घंटे 39 मिनट तक व्याप्त रहेगी इस वर्ष दीपावली स्वाति नक्षत्र आयुष्मान योग कालीन अपराहन साईं ग्रह प्रदोष नशीद म्हनशील व्यापिनी अमावस से युक्त होने से विशेषता प्रशस्त एवं पुण्य दायक रहेगी  दीपावली एक प्रकार से पांच पर्वों का सम्मिलित त्योहार है जिसकी शुरुआत धनतेरस से आरंभ होकर भाई दूज तक रहती है दीपावली के पर्व पर धन की प्राप्ति के लिए धन की अष्टधातु की देवी महालक्ष्मी जी का आवाहन एवं षोडशोपचार पूजन किया जाता है पूजा की सामग्री में सुपारी रोली मोली अक्षत पुष्प निवेद ध

कल से आरंभ होंगे पितृपक्ष जाने!विशेष तिथियां एवं महत्व ?

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ज्योतिर्विद्   पंडित कपिल जोशी के अनुसार हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व होता है। पितृ पक्ष के 16 दिनों में हम अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उन्हें श्राद्ध और तर्पण दिया जाता है। रमान्यता है पितृगण हमारे लिए देवता तुल्य होते हैं इस कारण से पितृ पक्ष में पितरों से संबंधित सभी तरह के कार्य करने पर वे हमें अपना आशीर्वाद देते हैं। मान्यता है पितर के प्रसन्न होने पर देवतागण भी हमसे प्रसन्न होते हैं। पितृ पक्ष के दौरान पूर्वजों का तर्पण नहीं करने हम पर पितृदोष लगता है। पितृ पक्ष का आरंभ आश्विन मास महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से होती है। इस वर्ष पितृपक्ष 20 सितंबर से शुरू होकर 06 अक्तूबर को समाप्त हो जाएगा।  आइए जानते हैं पितृपक्ष 2021 की प्रमुख तिथियां ... पूर्णिमा श्राद्ध - 20 सितंबर प्रतिपदा श्राद्ध - 21 सितंबर  द्वितीया श्राद्ध - 22 सितंबर  तृतीया श्राद्ध - 23 सितंबर  चतुर्थी श्राद्ध - 24 सितंबर  पंचमी श्राद्ध - 25 सितंबर  षष्ठी श्राद्ध - 27 सितंबर  सप्तमी श्राद्ध - 28 सितंबर  अष्टमी श्राद्ध- 29 सितंबर नवमी श्राद्ध - 30 सितंबर  दशमी श्राद्ध - 1 अक्तूबर  एका
संचार, वाणी, वाणिज्य और बुद्धि आदि का कारक ग्रह बुध 26 मई 2021 को अपनी स्वराशि मिथुन में गोचर करेंगे। इस राशि में बुध देव 3 जून 2021 तक स्थित रहेंगे। इस बीच 30 मई 2021 को बुध ग्रह वक्री भी होंगे। बुध देव के इस गोचर से कई जातकों को लाभ होगा। कार्य, व्यापार में सफलता मिलेगी। आइए जानते हैं सभी राशियों पर बुध के इस गोचर का प्रभाव-  मेष राशि बुध का गोचर आपकी राशि से तीसरे भाव में होगा। इस अवधि में आपका आत्म-विश्वास बढ़ेगा। छोटे भाई-बहनों के साथ रिश्ते बेहतर होंगे। आपके साहस और पराक्रम में वृद्धि  वृष राशि बुध का गोचर आपकी राशि से दूसरे भाव में होगा। बुध का गोचर आपकी संवाद शैली को मजबूत करेगा। कुटुंब के लिए परिस्थितियां अच्छी होंगी। इस दौरान आप धन बचत कर पाने में भी सफल होंगे। मिथुन राशि बुध का गोचर आपकी राशि से लग्न भाव में होगा। अपनी बुद्धि विवेक के कारण आप सही निर्णय लेंगे। इस समय आपको शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है। वैवाहिक जीवन में सुख-शांति का वातावरण देखने को मिलेगा। कर्क राशि बुध का गोचर आपकी राशि से बारहवें भाव में होगा। इस अवधि में आपके खर्चे बढ़ेंगे। खर्च के मुकाबले आमदनी कम होगी।

श्री गरुड़ पुराण जी का सोलवा अध्याय

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श्री गरुड़ पुराण जी का सोलवा अध्याय  मनुष्य शरीर प्राप्त करने की महिमा, धर्माचरण ही मुख्य कर्तव्य, शरीर और संसार की दु:खरूपता तथा नश्वरता, मोक्ष-धर्म-निरूपण   गरुड़ उवाच गरुड़ जी ने कहा –  हे दयासिन्धो ! अज्ञान के कारण जीव जन्म-मरणरूपी संसार चक्र में पड़ता है, यह मैंने सुना। अब मैं मोक्ष के सनातन उपाय को सुनना चाहता हूँ। हे भगवन ! हे देवदेवेश ! हे शरणागतवत्सल ! सभी प्रकार के दु:खों से मलिन तथा साररहित इस भयावह संसार में अनेक प्रकार के शरीर धारण करके अनन्त जीवराशियाँ उत्पन्न होती हैं और मरती हैं, उनका कोई अन्त नहीं है। ये सभी सदा दु:ख से पीड़ित रहते हैं, इन्हें कहीं सुख नहीं प्राप्त होता। हे मोक्षेश ! हे प्रभो ! किस उपाय के करने से इन्हें इस संसृति-चक्र से मुक्ति प्राप्त हो सकती है, इसे आप मुझे बताएँ।   श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान ने कहा –  हे तार्क्ष्य ! तुम इस विषय में मुझसे जो पूछते हो, मैं बतलाता हूँ ! सुनो – जिसके सुनने मात्र से मनुष्य संसार से मुक्त हो जाता है। वह परब्रह्म परमात्मा निष्कल (कलारहित) परब्रह्मस्वरूप, शिवस्वरूप, सर्वज्ञ, सर्वेश्वर, निर्मल तथा अद्वय (द्वैतभावरह

श्री गरुड़ पुराण जी का पंद्रहवा अध्याय

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श्री गरुड़ पुराण जी का पंद्रहवा अध्याय धर्मात्मा जन का दिव्यलोकों का सुख भोगकर उत्तम कुल में जन्म लेना, शरीर के व्यावहारिक तथा पारमार्थिक दो रूपों का वर्णन, अजपाजप की विधि, भगवत्प्राप्ति के साधनों में भक्ति योग की प्रधानता   गरुड़ उवाच गरुड़ जी ने कहा –  धर्मात्मा व्यक्ति स्वर्ग के भोगों को भोगकर पुन: निर्मल कुल में उत्पन्न होता है इसलिए माता के गर्भ में उसकी उत्पत्ति कैसे होती है, इस विषय में बताइए। हे करुणानिधे ! पुण्यात्मा पुरुष इस देह के विषय में जिस प्रकार विचार करता है, वह मैं सुनना चाहता हूँ, मुझे बताइए।   श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान ने कहा –  हे तार्क्ष्य ! तुमने ठीक पूछा है, मैं तुम्हें परम गोपनीय बात बताता हूँ जिसे जान लेने मात्र से मनुष्य सर्वज्ञ हो जाता है। पहले मैं तुम्हें शरीर के पारमार्थिक स्वरूप के विषय में बतलाता हूँ, जो ब्रह्माण्ड के गुणों से संपन्न है और योगियों के द्वारा करने योग्य है। इस पारमार्थिक शरीर में जिस प्रकार योगी लोग षट्चक्र का चिन्तन करते हैं, वह सब मुझसे सुनो। पुण्यात्मा जीव पवित्र आचरण करने वाले लक्ष्मी संपन्न गृहस्थों के घर में जैसे उत्पन्न हो

श्री गरुड़ पुराण जी का चतुर्दश अध्याय

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  श्री गरुड़ पुराण जी का चतुर्दश अध्याय यमलोक एवं यमसभा का वर्णन, चित्रगुप्त आदि के भवनों का परिचय, धर्मराज नगर के चार द्वार, पुण्यात्माओं का धर्म सभा में प्रवेश   गरुड़ उवाच गरुड़ जी ने कहा –  हे दयानिधे ! यमलोक कितना बड़ा है? कैसा है? किसके द्वारा बनाया हुआ है? वहाँ की सभा कैसी है और उस सभा में धर्मराज किनके साथ बैठते हैं? हे दयानिधे ! जिन धर्मों का आचरण करने के कारण धार्मिक पुरुष जिन धर्म मार्गों से धर्मराज के भवन में जाते हैं, उन धर्मों तथा मार्गों के विषय में भी आप मुझे बतलाइए !   श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान ने कहा –  हे गरुड़ ! धर्मराज का जो नगर नारदादि मुनियों के लिए भी अगम्य है उसके विषय में बतलाता हूँ, सुनो ! उस दिव्य धर्म नगर को महापुण्य से ही प्राप्त किया जा सकता है। दक्षिण दिशा और नैऋत्य कोण के मध्य में वैवस्वत, यम का जो नगर है, वह संपूर्ण नगर वज्र का बना हुआ है, दिव्य है और असुरों तथा देवताओं से अभेद्य है। वह पुर चौकोर, चार द्वारों वाला, ऊँची चार दीवारी से घिरा हुआ और एक हजार योजन प्रमाण वाला कहा गया है। उस पुर में चित्रगुप्त का सुन्दर मन्दिर है, जो पच्चीस योजन लम्