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Showing posts from September, 2020

29 सितंबर को शनि देव होंगे मार्गी इन राशियों का खुलेगा भाग्य

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ज्योतिर्विद् पंडित   कपिल जोशी ने बताया कि    ज्योतिष शास्त्र में शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है अगर शनि जातक की कुंडली में अच्छे स्थान पर बैठा हो तो वह उसे धन-संपत्ति नौकर चाकर देखकर राजा बना देता है अगर कहीं  यह शनि दुर्भाग्यवश किसी की कुंडली में नीच का या शत्रु राशि में जाकर बैठ जाए तो उस व्यक्ति को दर-दर का भिखारी दरिद्री बना देता ह इस महीने 29 सितंबर 2020 को शनि देव मकर राशि में सुबह 10:39 के करीब मार्गी होने जा रहे हैं इससे पहले शनिदेव 11 मई को मकर राशि में वक्री हुए थे इस वर्ष 24 जनवरी को शनि देव ने मकर राशि में प्रवेश किया था जब से शनि देव वक्री अवस्था में गए हैं 11 मई 2020 से तब से विश्व के हालात काफी तनावपूर्ण संकट पूर्ण एवं अनेक प्रकार की बीमारियों के प्रभाव के कारण उथल-पुथल वाले रहे अब शनिदेव अपनी चाल को सीधी करते हुए विभिन्न प्रकार की उथल-पुथल की परिस्थितियों से कई राशियों को राहत देते हुए विश्व में राहत लेकर आएंगे जिससे समाज में फैली हुई महामारी का प्रभाव कम होगा और किसी दवा के आने से या उसके आने के संकेत मिलने से जन समाज को राहत मिलने की संभावना1 है  

विवाह के समय वर-वधू का गठबंधन करना क्यों आवश्यक है ?

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ज्योतिर्विद् पंडित   कपिल जोशी  ने बताया हिंदू शास्त्रों के अनुसार सनातन धर्म में  विवाह संस्कार का प्रतीक रूप गठबंधन है विवाह के समय या फिर लेते समय वर के कंधे पर सफेद दुपट्टा रखकर वधू की साड़ी के पल्लू के साथ बांध दिया जाता है यही गठबंधन है जिसका अर्थ यह है कि अब दोनों एक दूसरे से जीवन भर के लिए बंध गए हैं गठबंधन के समय वर के पल्ले में सिक्का हल्दी पुष्प दुर्वा और अक्षत रखकर  गांठ बांधी जाती है सिक्का   जिसका अर्थ यह है कि धन पर किसी एक का पूर्ण अधिकार नहीं होगा बल्कि खर्च करने में दोनों की सहमति आवश्यक है 5 पुष्प  पुष्प का अर्थ है कि वर वधू जीवन भर एक दूसरे को देखकर प्रसन्न रहें हल्दी   हल्दी आरोग्यता का प्रतीक है  हल्दी जीवन में आने वाली विधाओं का हरण करें जिस प्रकार चौक चौखट पर हल्दी का चक्कर बनाने से जीव जंतु कीड़े मकोड़े नहीं आते हैं उसी प्रकार वर वधु के गट जोड़े में हल्दी रखने मैं यह अभाव रहता है कि इनके जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट ना आए और इनका जीवन सुख में रहें  दूर्वा दूर्वा का अर्थ यह जानना चाहिए कि नव दंपति जीवन भर कभी ना  मुरझाए जाएं बल्कि  दूर्वा की तरह

क्या आप जानते हैं ? शिवलिंग की पूजा क्यों की जाती है ? क्या इसमें कोई वैज्ञानिक रहस्य ?

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 शिव और शिवलिंग की पूजा अनादि काल से किसी ना किसी रूप से चली आ रही है समाज में कुछ आलोचक ऐसे हैं जो  लिंग शब्द का अर्थ अश्लीलता से जोड़कर सभ्य और धार्मिक विचार वाले व्यक्तियों को भ्रमित करने का प्रयास करते हैं यह मूर्खतापूर्ण प्रयास है  क्योंकि शिवलिंग का स्वरूप अकार विशेष से रहित है अर्थात निराकार ब्रह्म के उपासक जिस प्रकार हाथ पैर  शरीर रहित रूप एवं रंग रहे थे ब्रह्मा की उपासना करते हैं वैसे ही शिवलिंग का स्वरूप है जब संसार में कुछ नहीं था  सर्वस्व शून्य या अंधकार का जिसे वेद एवं पुराणों की भाषा में अंड कहा जाता है वैसा ही स्वरूप शिवलिंग का है इससे सिद्ध होता है कि शिव और शिव लिंग अनादिकाल से है यह सुनने किसी  अंक के दाहिने और  होने पर उस अंक के महत्व को 10 गुना बढ़ा देता है उसी प्रकार शिव भी दाहिनी होकर अर्थात अनुकूल होकर मनुष्य को सुख एवं समृद्धि और मान सम्मान प्रदान करते हैं 11 रूद्र में भगवान शिव की गणना होती है और एकादश संख्यात्मक होने के कारणभी यह पर्व हिंदी के 11 में महीने में ही संपन्न होता है  धर्म एवं ज्योतिष से संबंधित रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारियां प्राप्त करन