करवा चौथ की कथा एवं पूजन का शुभ मुहूर्त कब

ज्योतिर्विद् पंडित कपिल जोशी ने बताया की शास्त्रानुसार इस वर्ष विक्रमी संवत सर 2079 शक 1944 कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे बृहस्पतिवार को चतुर्दशी तिथि कृतिका नक्षत्र सिद्धि योग एवं बब करण 13 अक्टूबर 2022 ईस्वी को करवा चौथ का व्रत सुहागन स्त्रियों द्वारा अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए श्रद्धा भावना के साथ मनाया जाएगा इस दिन सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु के लिए शिव गोरा एवं भगवान गणपति जी की विषकर पूजा अर्चना करती हैं प्रातः काल सभी औरतें अपने घरों में तारों की छांव में स्नान आदि से निर्मित होकर ज्योति प्रज्वलत करने के उपरांत गणेश जी एवं माता गौरी की पूजा करके व्रत का आरंभ करती हैं एवं अपरांत काल में सभी सुहाग ने एक जगह एकत्रित होकर करवा चौथ की कथा का श्रवण करती है एवं अपने-अपने करवा का पूजन विधि विधान से करती हैं रात्रि काल में 8:35 पर चंद्रदेव के उदय होते ही चंद्रमा को जल अर्पण करने के उपरांत अपने पतिदेव के दर्शन छलनी में करती हैं तथा उसके बाद ही भोजन ग्रहण करती हैं ऐसी प्रथा हमारे भारत में सदियों से चली आ रही है 
करवा पूजन एवं कथा करने का शुभ मुहूर्त
13 अक्टूबर 2022 को अभिजीत मुहूर्त 11:50 से 12:36 तक अमृत का चौघड़िया दोपहर 1:39 से  3:05 तक 4:31 से लेकर 5:57 तक यह समय कथा करने एवं करवा पूजन के लिए शुभ रहेगा
करवा चौथ की कहानी -
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। प्यार इतना था कि वो पहले उसे खाना खिलाते और बाद में खुद खाते।  एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही खा सकती है। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है। ऐसे में सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं गई और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा लगता है कि जैसे चतुर्थी का चांद हो।  भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है, उसे अर्घ्‍य देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है जैसे ही वह दूसरा टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसमें से बाल निकल आता है और जब वह तीसरा टुकड़ामुँह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। इससे वह बौखला जाती है। तब उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है। एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियाँ करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियाँ उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से 'यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो' ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है। इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूँकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह के वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है। अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अँगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुँह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश माँ गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले
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ज्योतिषाचार्य पंडित कपिल जोशी
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