संचार, वाणी, वाणिज्य और बुद्धि आदि का कारक ग्रह बुध 26 मई 2021 को अपनी स्वराशि मिथुन में गोचर करेंगे। इस राशि में बुध देव 3 जून 2021 तक स्थित रहेंगे। इस बीच 30 मई 2021 को बुध ग्रह वक्री भी होंगे। बुध देव के इस गोचर से कई जातकों को लाभ होगा। कार्य, व्यापार में सफलता मिलेगी। आइए जानते हैं सभी राशियों पर बुध के इस गोचर का प्रभाव- मेष राशि बुध का गोचर आपकी राशि से तीसरे भाव में होगा। इस अवधि में आपका आत्म-विश्वास बढ़ेगा। छोटे भाई-बहनों के साथ रिश्ते बेहतर होंगे। आपके साहस और पराक्रम में वृद्धि वृष राशि बुध का गोचर आपकी राशि से दूसरे भाव में होगा। बुध का गोचर आपकी संवाद शैली को मजबूत करेगा। कुटुंब के लिए परिस्थितियां अच्छी होंगी। इस दौरान आप धन बचत कर पाने में भी सफल होंगे। मिथुन राशि बुध का गोचर आपकी राशि से लग्न भाव में होगा। अपनी बुद्धि विवेक के कारण आप सही निर्णय लेंगे। इस समय आपको शुभ समाचार प्राप्त हो सकता है। वैवाहिक जीवन में सुख-शांति का वातावरण देखने को मिलेगा। कर्क राशि बुध का गोचर आपकी राशि से बारहवें भाव में होगा। इस अवधि में आपके खर्चे बढ़ेंगे। खर्च के मुकाबले आमदनी कम होगी।
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Showing posts from May, 2021
श्री गरुड़ पुराण जी का सोलवा अध्याय
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श्री गरुड़ पुराण जी का सोलवा अध्याय मनुष्य शरीर प्राप्त करने की महिमा, धर्माचरण ही मुख्य कर्तव्य, शरीर और संसार की दु:खरूपता तथा नश्वरता, मोक्ष-धर्म-निरूपण गरुड़ उवाच गरुड़ जी ने कहा – हे दयासिन्धो ! अज्ञान के कारण जीव जन्म-मरणरूपी संसार चक्र में पड़ता है, यह मैंने सुना। अब मैं मोक्ष के सनातन उपाय को सुनना चाहता हूँ। हे भगवन ! हे देवदेवेश ! हे शरणागतवत्सल ! सभी प्रकार के दु:खों से मलिन तथा साररहित इस भयावह संसार में अनेक प्रकार के शरीर धारण करके अनन्त जीवराशियाँ उत्पन्न होती हैं और मरती हैं, उनका कोई अन्त नहीं है। ये सभी सदा दु:ख से पीड़ित रहते हैं, इन्हें कहीं सुख नहीं प्राप्त होता। हे मोक्षेश ! हे प्रभो ! किस उपाय के करने से इन्हें इस संसृति-चक्र से मुक्ति प्राप्त हो सकती है, इसे आप मुझे बताएँ। श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान ने कहा – हे तार्क्ष्य ! तुम इस विषय में मुझसे जो पूछते हो, मैं बतलाता हूँ ! सुनो – जिसके सुनने मात्र से मनुष्य संसार से मुक्त हो जाता है। वह परब्रह्म परमात्मा निष्कल (कलारहित) परब्रह्मस्वरूप, शिवस्वरूप, सर्वज्ञ, सर्वेश्वर, निर्मल तथा अद्वय (द्वैतभावरह
श्री गरुड़ पुराण जी का पंद्रहवा अध्याय
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श्री गरुड़ पुराण जी का पंद्रहवा अध्याय धर्मात्मा जन का दिव्यलोकों का सुख भोगकर उत्तम कुल में जन्म लेना, शरीर के व्यावहारिक तथा पारमार्थिक दो रूपों का वर्णन, अजपाजप की विधि, भगवत्प्राप्ति के साधनों में भक्ति योग की प्रधानता गरुड़ उवाच गरुड़ जी ने कहा – धर्मात्मा व्यक्ति स्वर्ग के भोगों को भोगकर पुन: निर्मल कुल में उत्पन्न होता है इसलिए माता के गर्भ में उसकी उत्पत्ति कैसे होती है, इस विषय में बताइए। हे करुणानिधे ! पुण्यात्मा पुरुष इस देह के विषय में जिस प्रकार विचार करता है, वह मैं सुनना चाहता हूँ, मुझे बताइए। श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान ने कहा – हे तार्क्ष्य ! तुमने ठीक पूछा है, मैं तुम्हें परम गोपनीय बात बताता हूँ जिसे जान लेने मात्र से मनुष्य सर्वज्ञ हो जाता है। पहले मैं तुम्हें शरीर के पारमार्थिक स्वरूप के विषय में बतलाता हूँ, जो ब्रह्माण्ड के गुणों से संपन्न है और योगियों के द्वारा करने योग्य है। इस पारमार्थिक शरीर में जिस प्रकार योगी लोग षट्चक्र का चिन्तन करते हैं, वह सब मुझसे सुनो। पुण्यात्मा जीव पवित्र आचरण करने वाले लक्ष्मी संपन्न गृहस्थों के घर में जैसे उत्पन्न हो
श्री गरुड़ पुराण जी का चतुर्दश अध्याय
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श्री गरुड़ पुराण जी का चतुर्दश अध्याय यमलोक एवं यमसभा का वर्णन, चित्रगुप्त आदि के भवनों का परिचय, धर्मराज नगर के चार द्वार, पुण्यात्माओं का धर्म सभा में प्रवेश गरुड़ उवाच गरुड़ जी ने कहा – हे दयानिधे ! यमलोक कितना बड़ा है? कैसा है? किसके द्वारा बनाया हुआ है? वहाँ की सभा कैसी है और उस सभा में धर्मराज किनके साथ बैठते हैं? हे दयानिधे ! जिन धर्मों का आचरण करने के कारण धार्मिक पुरुष जिन धर्म मार्गों से धर्मराज के भवन में जाते हैं, उन धर्मों तथा मार्गों के विषय में भी आप मुझे बतलाइए ! श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान ने कहा – हे गरुड़ ! धर्मराज का जो नगर नारदादि मुनियों के लिए भी अगम्य है उसके विषय में बतलाता हूँ, सुनो ! उस दिव्य धर्म नगर को महापुण्य से ही प्राप्त किया जा सकता है। दक्षिण दिशा और नैऋत्य कोण के मध्य में वैवस्वत, यम का जो नगर है, वह संपूर्ण नगर वज्र का बना हुआ है, दिव्य है और असुरों तथा देवताओं से अभेद्य है। वह पुर चौकोर, चार द्वारों वाला, ऊँची चार दीवारी से घिरा हुआ और एक हजार योजन प्रमाण वाला कहा गया है। उस पुर में चित्रगुप्त का सुन्दर मन्दिर है, जो पच्चीस योजन लम्
श्री गरुड़ पुराण जी का त्रयोदशी अध्याय
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श्री गरुड़ पुराण जी का त्रयोदशी अध्याय अशौचकाल का निर्णय, अशौच में निषिद्ध कर्म, सपिण्डीकरण श्राद्ध, पिण्डमेलन की प्रक्रिया, शय्यादान, पददान तथा गया श्राद्ध की महिमा गरुड़ उवाच गरुड़जी ने कहा – हे प्रभो! सपिण्डन की विधि, सूतक का निर्णय और शय्यादान तथा पददान की सामग्री एवं उनकी महिमा के विषय में कहिए। श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान ने कहा – हे तार्क्ष्य! सपिण्डीकरण आदि सम्पूर्ण क्रियाओं के विषय में बतलाता हूँ, जिसके द्वारा मृत प्राणी प्रेत नाम को छोड़कर पितृगण में प्रवेश करता है, उसे सुनो। जिनका पिण्ड रुद्रस्वरुप पितामह आदि के पिण्डों में नहीं मिला दिया जाता, उनकों पुत्रों के द्वारा दिये गये अनेक प्रकार के दान प्राप्त नहीं होते। उनका पुत्र भी सदा अशुद्ध रहता है कभी शुद्ध नहीं होता क्योंकि सपिण्डीकरण के बिना सतक की निवृत्ति अर्थात समाप्ति नहीं होती। इसलिए पुत्र के द्वारा सूतक के अन्त में सपिण्डन किया जाना चाहिए। मैं सभी के लिए सूतकान्त का यथोचित काल कहूँगा। ब्राह्मण दस दिन में, क्षत्रिय बारह दिन में, वैश्य पन्द्रह दिन और शूद्र एक मास में शुद्ध होता है। प्रेत संबंधी सूतक म
श्री गरुड़ पुराण जी का 12 वां अध्याय
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श्री गरुड़ पुराण जी का 12 वां अध्याय एकादशाहकृत्य-निरुपण, मृत-शय्यादान, गोदान, घटदान, अष्टमहादान, वृषोत्सर्ग, मध्यमषोडशी, उत्तमषोडशी एवं नारायणबलि गरुड़ उवाच गरुड़जी ने कहा – हे सुरेश्वर ! ग्यारहवें दिन के कृत्य-विधान को भी बताइए और हे जगदीश्वर! वृषोत्सर्ग की विधि भी बताइये। श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान ने कहा – ग्यारहवें दिन प्रात:काल ही जलाशय पर जाकर प्रयत्नपूर्वक सभी और्ध्वदैहिक क्रिया करनी चाहिए। वेद और शास्त्रों का अभ्यास करने वाले ब्राह्मणों को निमंत्रित करें और हाथ जोड़कर नमस्कार करके उनसे प्रेत की मुक्ति के लिये प्रार्थना करें। आचार्य भी स्नान-संध्या आदि करके पवित्र हो जाएँ और ग्यारहवें दिन के लिये उचित कृत्यों का विधिवत विधान आरम्भ करें। दस दिन तक मृतक के नाम-गोत्र का उच्चारण मन्त्रोच्चारण के बिना करना चाहिए। ग्यारहवें दिन प्रेत का पिण्डदान समन्त्रक (मन्त्रों सहित) करना चाहिए। हे गरुड़ ! सुवर्ण से विष्णु की, रजत से ब्रह्मा की, ताम्र से रुद्र की और लौह से यम की प्रतिमा बनवानी चाहिए। पश्चिम भाग में गंगाजल से परिपूर्ण विष्णुकलश स्थापित करके उसके ऊपर पीतवस्त्र से वेष
श्री गरुड़ पुराण एकादश अध्याय
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श्री गरुड़ पुराण एकादश अध्याय दशगात्र – विधान गरुड़ उवाच गरुड़ जी बोले – हे केशव ! आप दशगात्र विधि के संबंध में बताइए, इसके करने से कौन-सा पुण्य प्राप्त होता है और पुत्र के अभाव में इसको किसे करना चाहिए। श्रीभगवानुवाच श्रीभगवान बोले – हे तार्क्ष्य ! अब मैं दशगात्रविधि को तुमसे कहता हूँ, जिसको धारण करने से सत्पुत्र पितृ-ऋण से मुक्त हो जाता है। पुत्र (पिता के मरने पर) शोक का परित्याग करके धैर्य धारण कर सात्विक भाव से समन्वित होकर पिता का पिण्डदान आदि कर्म करें। उसे अश्रुपात नहीं करना चाहिए। क्योंकि बान्धवों के द्वारा किये गये अश्रुपात और श्लेष्मपात को विवश होकर (पितारूपी) प्रेत पान करता है इसलिए इस समय निरर्थक शोक करके रोना नहीं चाहिए। यदि मनुष्य हजारों वर्ष रात-दिन शोक करता रहे, तो भी प्राणी कहीं भी दिखाई नहीं पड़ सकता। जिसकी उत्पत्ति हुई है, उसकी मृत्यु सुनिश्चित है और जिसकी मृ्त्यु हुई है उसका जन्म भी निश्चित है। इसलिए बुद्धिमान को इस अवश्यम्भावी जन्म-मृत्यु के विषय में शोक नहीं करना चाहिए। ऎसा कोई दैवी अथवा मानवीय उपाय नहीं है, जिसके द्वारा मृत्यु को प्राप्त हुआ व्य