श्री सत्यनारायण व्रत की कथा एवं पूजा की विधि
आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि श्री सत्यनारायण व्रत की कथा एवं व्रत करने से पहले पूजन की सामग्री क्या होनी चाहिए केले के खंबे आम के पत्ते तुलसी के पत्ते मौसम के अनुसार फल धूप रोली मौली कपूर दीपक श्रीफल पुष्प पुष्पमाला गुलाब के फूल पंच रतन पंच पल्लव चावल पंचामृत नवेद कलावा यज्ञोपवीत पान के पत्ते श्री सत्यनारायण व्रत के पूजा की विधि व्रत करने वाला पूर्णिमा एवं संक्रांति के दिन साईं काल के समय स्नान आदि से निर्मित होकर पूजा स्थान में आसन पर बैठकर श्री गणेश गौरी वरुण विष्णु आदि सभी देवताओं का ध्यान करके पूजन करें और संकल्प करें कि मैं श्री सत्यनारायण स्वामी का पूजन एवं कथा श्रवण सदैव करूंगा पुष्पा हाथ में लेकर श्री सत्यनारायण भगवान जी का ध्यान करें यगोपवित पुष्प नवीन आदि से युक्त होकर भगवान की स्तुति करें हे भगवान मैंने श्रद्धा पूर्वक फल जल आदि सब सामग्री आपके चरणो में अर्पण की है इसे स्वीकार कीजिए आपदाओं से मेरी रक्षा कीजिए मेरा आपको बारंबार नमस्कार है इसके उपरांत श्री सत्यनारायण जी की कथा पढ़ें अथवा श्रवण करें श्री सत्यनारायण जी की व्रत कथा प्रथम अध्याय एक समय नैमिषारण्य तीर्थ में शौनक आदि 88000 ऋषियों ने श्री सूत जी से पूछा हे प्रभु इस कलयुग में वेद विद्या रहे मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिलेगी तथा उनका उद्धार कैसे होगा हे मुनीश्वर कोई ऐसा तब कहिए जिसमें थोड़े समय में पुण्य प्राप्त हो तथा मनोवांछित फल भी मिले वह कथा सुनने की हमारी प्रबल इच्छा है सर्व शास्त्र ज्ञाता श्री सूची बोले हे वैष्णव में पूज्य आप सब ने प्राणियों के हित की बात पूछी है अब मैं उस श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों से कहूंगा जिस व्रत को नारद जी ने श्री लक्ष्मी नारायण भगवान से पूछा था और श्री लक्ष्मी नारायण जी ने मुनि श्रेष्ठ नारे जी से कहा था वह कथा ध्यान से सुनो एक समय योगीराज नारद जी दूसरों के हित की इच्छा से अनेक लोगों में घूमते हुए पृथ्वी लोक में आ पहुंचे यहां अनेक योनियों में जन्मे हुए प्राय सभी लोगों को अपने कर्मों द्वारा अनेकों दुखों से पीड़ित देखकर विचार करने लगे कि किस यतन करने से निश्चय ही मानवों के दुखों का नाश हो सकेगा ऐसा मन में सोच कर मुनि श्रेष्ठ नारद विष्णु लोक को गए वहां वहां श्वेत वर्ण और चार भुजाओं वाले देवों के देव ईस्ट श्री नारायण जी का जिनके हाथों में शंख चक्र गदा और पदम थे तथा वरमाला पहने हुए थे देखकर स्तुति करने लगे हे भगवान आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं मंत्र था वाणी में आपको नहीं पा सकते आपका आदि मध्य अंत नहीं है निर्गुण स्वरूप सृष्टि के पालन भक्तों के दुखों को नष्ट करने वाले हो आपको मेरा नमस्कार है बारंबार नमस्कार है नारद जी से इस प्रकार की मधुर सूची सुनकर श्री विष्णु भगवान भोले हे मनुष्य आपके मन में क्या है आपका किस काम के लिए आगमन हुआ है निसंकोच कहिए तब श्री नारद जी बोले मृत्यु लोक में सब मनुष्य जो अनेक योनि में पैदा हुए हैं अपने अपने कर्मों के द्वारा अनेक प्रकार के दुखों से दुखी हो रहे हैं हे नाथ मुझ पर दया रखते हुए यह बतलाइए कि उन मनुष्यों के सब दुख थोड़े से ही वेतन से कैसे दूर हो सकते हैं श्री भगवान जी बोले हे नारद मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है जिस कार्य के करने से मनुष्य मुंह से छूट जाता है वह मैं तुमसे कहता हूं सुनो बहुत पुण्य देने वाला स्वर्ग तथा मृत्यु लोक दोनों में दुर्लभ यह उत्तम व्रत है आज मैं प्रेम बस होकर तुमसे कहता हूं श्री सत्यनारायण भगवान का यह व्रत अच्छी तरह विधि पूर्वक संपन्न करके मनुष्य तुरंत ही यहां सुख भोग कर मृत्यु के पश्चात मोक्ष को प्राप्त होता है श्री भगवान के वचन सुनकर श्री नारद मुनि बोले कि उस व्रत का क्या फल है क्या विधान है किसने यह व्रत किया है और यह किस दिन व्रत करना चाहिए हे श्री हरि विष्णु भगवान मुझसे कृपा कर विस्तार से कहें श्री हरि विष्णु बोले दुख सुख आदि को दूर करने वाला यह व्रत सब स्थानों पर विजय देने वाला है भक्ति और श्रद्धा के साथ किसी भी दिन मनुष्य श्री सत्यनारायण भगवान की साईं काल के समय ब्राह्मणों और बंधुओं के साथ धर्म प्राइम होकर पूजा करें वर्ती भाव से नैवेद्य केले का फल भी दूध और गेहूं का चूर्ण सवाया लेवे गेहूं के अभाव में साठी का चूर्ण शक्कर अथवा ले सकता है तथा भक्ति भाव से भगवान को अर्पण करें बंधु बंधुओं सहित ब्राह्मण को भोजन करा वे तत्पश्चात स्वयं भोजन करें रात्रि काल में नृत्य भजन कीर्तन आदि का आयोजन कर श्री सत्यनारायण भगवान का स्मरण करता हुआ समय व्यतीत करें इस तरह व्रत उपवास करने पर मनुष्य की इच्छा निश्चय पूर्ण होती है विशेषकर कली काल काल में मृत्यु लोक में यही मोक्ष का सरल उपाय है
दूसरा अध्याय
सूत जी बोले हेतु जिसने पहले समय में इस व्रत को किया है उसका इतिहास कहता हूं ध्यान से सुने सुंदर काशीपुर नगरी में एक अत्यंत निर्धन रहता था भूख और प्यास से बेचैन हुआ पृथ्वी पर घूमता था ब्राह्मण से प्रेम करने वाले श्री भगवान ने ओके देख कर पूरे ब्राह्मण का रूप धारण कर उसके पास जाकर पूछा हे विप्र तुम नित्य ही दुखी होकर पृथ्वी पर क्यों घूमते हो यह सब मुझसे कहो मैं सुनना चाहता हूं ब्राह्मण बोला मैं निर्धन ब्राह्मण हूं भिक्षा के लिए पृथ्वी पर फिरता हूं हे भगवान यदि आप इससे छुटकारे का उपाय जानते हैं तो कृपया कर मुझसे कहे बृज ब्राह्मण बोला कि श्री सत्यनारायण भगवान मनवांछित फल देने वाले हैं इसलिए ब्राह्मण तो उनका पूजन कर जिसके करने से मनुष्य सब दुखों से मुक्त होता है ब्राह्मण को व्रत का सारा विधान बता बता कर बूढ़े ब्राह्मण का रूप धारण करने वाले श्री सत्यनारायण भगवान अंतर्ध्यान हो गए जिस बात को वृद्ध ब्राह्मण ने बतलाया है मैं उसको करूंगा यह निश्चय करने पर उस ब्राह्मण को रात को नींद नहीं आई वह सुबह उठकर श्री सत्यनारायण भगवान का निश्चय कर भिक्षा के लिए चल दिया उस दिन उसको भिक्षा में बहुत धन प्राप्त हुआ जिससे बंधु बंधुओं के साथ उसने श्री सत्यनारायण जी का व्रत किया जिसके करने से वह भी पर सब दुखों से छूट कर अनेक प्रकार की संपत्तियों से युक्त हुआ उस समय से मैं भी पर हर मास व्रत करने लगा इस तरह सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो करेगा सुबह सब पापों से छूट कर अंत में मोक्ष को प्राप्त होगा आगे जो पृथ्वी पर सत्यनारायण भगवान का व्रत करेगा वह मनुष्य सब दुखों से छूट जाएगा इस तरह नारद जी से भगवान श्री नारायण का कहा हुआ यह व्रत मैंने तुमसे कहा है विप्रो मैं अब और क्या कहूं ऋषि बोले हे मुनीश्वर संसार में इस विप्र से सुनकर किस-किस ने इस व्रत को किया हम सब सुनना चाहते हैं इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा है सूची बोले हे मुनियों जिस जिस प्राणी ने इस व्रत को किया है वह सब सुनो एक समय एक ब्राह्मण धन और ऐश्वर्य के अनुसार बंधु बंधुुुओं के साथ व्रत करने को तैयार हुआ उसी समय एक लकड़ी बेचने वाला बड़ा आदमी आया और बाहर लकड़ियों को रखकर दीपक के मकान में गया प्याज से दुखी लक्कड़ हारा उनको व्रत करते देखकर विप्र को नमस्कार करके कहने लगा कि आप यह किस का पूजन कर रहे हैं और इस पूजा को करने से क्या फल मिलता है कृपा करके मुझसे कहें ब्राह्मण ने कहा कि सब मनोकामनाएं को पूरा करने वाला यह श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत है इनकी ही कृपा से मेरे यहां धनधान्य आदि की वृद्धि हुई है विप्र से इस व्रत के बारे में जानकर लकड़हारा बहुत प्रसन्न हुआ भगवान का चरणामृत ले और भोजन करने के बाद अपने घर को गया लकड़हारे ने अपने मन में इस प्रकार का संकल्प किया कि आज ग्राम में लकड़ी बेचने से जो धन मिलेगा उसी से उसी से सत्यनारायण देव का उत्तम व्रत करूंगा यह मन में विचार कर वह बुरा लग रहा है लकड़ियां अपने सिर पर रखकर जिस नगर में धनवान लोग रहते थे ऐसे सुंदर नगर में गया उस रोज वहां पर उसे उन लकड़ियों का दान पहले दिनों से चौगुना मिला तब वह बुरा लगा दामले और अति प्रसन्न होकर पके केले की फली शक्कर भी धूप नहीं गेहूं इत्यादि श्री सत्यनारायण भगवान के व्रत की सारी सामग्री को लेकर अपने घर को गया फिर उसने अपने भाइयों को बुलाकर विधि के साथ भगवान जी का पूजन और व्रत किया उस व्रत के प्रभाव से बूढा लकड़हारा हारा धन पुत्र आदि संयुक्त हुआ और संसार के समस्त उपभोग कर वैकुंठ को चला गया
तीसरा अध्याय
सूत जी बोले हे श्रेष्ठ मुनियों अब आगे की कथा कहता हूं ध्यान से सुनो पहले समय में उनका मुख्य नाम का एक बुद्धिमान राजा था वह सत्यव्रत था और जितेंद्रिय था प्रतिदिन देवस्थान पर जाता तथा गरीबों को दान देकर उनके कष्ट दूर करने की कोशिश करता था उसकी पत्नी कमल के समान मुख वाली और सती साध्वी थी भक्त शीला नदी के तट पर उन दोनों ने श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत किया उस समय वहां एक साधु वैसे आया उसके पास व्यापार के लिए बहुत साधन था वह नाव को किनारे पर आकर राजा के पास आया और राजा को प्रेरित करते हुए देखकर विनय के साथ उसने लगा हे राजन यह आप क्या कर रहे हैं मेरी सुनने की इच्छा है यह आप मुझे बतलाइए राजा बोला है वैश्य अपने बंधुओं के साथ उत्तर आदि की प्राप्ति के लिए एक महा शक्तिमान श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत एवं पूजन किया जा रहा है राजन के वचन सुनकर वैश्य आदर से बोला ही राजन मुझसे इसका सब विधान कहें मैं भी आपके कथन अनुसार इस व्रत को करूंगा मेरे भी कोई संतान नहीं है और इससे निश्चय ही होगी राजा से सब विधान सून व्यापार से निवृत्त हो वह आनंद के साथ घर गया साधु ने अपने पत्नी सेसंतान के सुख को देने वाले उस वक्त का समाचार अपनी धर्मपत्नी को सुनाया और कहा कि जब मेरे संतान होगी तब मैं इस व्रत को करूंगा करूंगा करूंगा व्रत को करूंगा साधु ने ऐसे वचन अपनी पत्नी लीलावती को कहें 1 दिन उसकी पत्नी लीलावती पति के साथ है आनंदित हो सांसारिक धर्म में प्रवृत्त होकर श्री सत्यनारायण भगवान जी की कृपा से गर्भवती हो गई तथा दसवें महीने में उसके घर एक सुंदर कन्या का जन्म हुआ विनोद दिन वह इस तरह बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष का चंद्रमा बढ़ता है कन्या का नाम कलावती रखा गया तब लीलावती ने मीठे शब्दों में अपने पति से कहा कि जो आपने संकल्प किया था कि श्री सत्यनारायण भगवान जी का व्रत करूंगा अब आप उसे करिए साधु बोला हे प्रिय कन्या के विवाह पर करूंगा इस प्रकार पत्नी को आश्वासन दे वह नगर को गया कलावती पितृ गृह में वृद्धि को प्राप्त हुई,, साधु ने नगर में सखियों के साथ अपनी पुत्री को देखा तो तुरंत ही दूत को बुलाकरकरकहां की पुत्री के लिए कोई सहयोग वर ढूंढ कर लाओ साधु की आज्ञा पाकर दूत कंचनकंचनगरनगर पहुंचाऔर वहां से खोज कर देखभाल कर लड़की के लिए सुयोग्य वर्णिक पुत्र को ले आया उसे सुयोग्य लड़के को देखके साधु ने अपने बंधु बंधुओं सहित प्रसन्न चित्त हो अपनी पुत्री का विवाह उस लड़के के साथ कर दिया किंतु दुर्भाग्य से विवाह के समय में उस व्रत को करना भूल श्री भगवान क्रोधित हो गए और कहां कि तुम्हें दारू ने दुख प्राप्त होगा अपने कार्य में कुशल साधु बनिया जमाता सहित नाव को लेकर व्यापार करने के लिए समुद्र के समीप रतनपुर नगर को गया और वहां दोनों ससुर जमाई चंद्रकेतु राजा के उस नगर में व्यापार करने लगे 1 दिन भगवान श्री सत्यनारायण जी की माया से प्रेरित होकर कोई चोर राजा का धन चुराकर रहा था 1 दिन 1 चोर भगवान श्री सत्यनारायण जी की माया से प्रेरित होकर राजा का धन चुरा कर भाग रहा था किंतु राजा के दूधों को आता देखकर चोर ने घबराकर भागते हुए राजा के धन को वही नाम में छुपा दिया जहां वह ससुर जमाई ठहरे हुए थे तथा चोर भाग गए जब दूतों ने उस साधु वैश्य के पास राजा के धन को रखा हुआ देखा तो दोनों को बांध कर ले गए और प्रसन्नता से दौड़ते हुए राजा के समीप जाकर बोले यह दो चोर हम पकड़ कर लाए हैं देखकर आज्ञा दें तब राजा की आज्ञा से उनको कठिन कारावास में डाल दिया गया तथा उनका धन छीन लिया गया श्री सत्यनारायण भगवान जी के द्वारा उनकी पत्नी भी घर पर बहुत दुखी हुई और घर पर जोधन रखा था उसे चोर चुरा कर ले गए शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा तथा भूख प्यास से अति दुखी हो अन्य की चिंता में कलावती एक ब्राह्मण के घर में गई वहां उसने श्री सत्यनारायण भगवान जी का व्रत होते हुए देखा फिर कथा सुनी तथा प्रसाद ग्रहण कर रात को घर आई माता ने कलावती से पूछा है पुत्री अब तक तू कहां थी तेरे मन में क्या है कलावती बोली थी माता मैंने एक ब्राह्मण के घर श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत होते हुए देखा है कन्या के वचन सुनकर लीलावती श्री हरि भगवान की पूजन की तैयारी करने लगी परिवार और बंधुओं सहित श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन किया और वर मांगा कि मेरे पति और दामाद श्री करावे साथ ही प्रार्थना की कि हम सबका अपराध क्षमा करें श्री सत्यनारायण भगवान व्रत से संतुष्ट हो गए और राजा चंद्र केतु को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि हे राजन दोनों बनिया को जल्दी ही छोड़ दो और उनका सब धन जो तुमने ग्रहण किया है दे दो नहीं तो मैं तेरा धनराज पुत्र नष्ट कर दूंगा ऐसे ऐसे वचन कह कर भगवान अंतर्ध्यान हो गए प्रातकाल राजा चंद्रकेतु ने सभा में अपना स्वपन सुनाया फिर दोनों वर्णिक पुत्रों को कैद से मुक्त कर सभा में बुलाया दोनों ने आते ही राजा को प्रणाम किया राजा मधुर वचनों से बोला हे महानुभाव भाग्य बस ऐसा कठिन दुख प्राप्त हुआ है अब तुम्हें कोई भय नहीं है ऐसा कहकर राजा नहीं उनको नए वस्त्र एवं आभूषण पहनाई तथा उनका जितना जन्म दिया था उससे दुगना देखकर आदर के साथ विदा किया दोनों वैश्य अपने घर को चल दिए चतुर्थ अध्याय सूजी बोले गल करके यात्रा और उनके थोड़ी दूर निकलने पर धारी उससे पूछा क्या है आप क्यों पूछते हो क्या लेने की इच्छा है मेरी नाम में तो बेल और पत्ते भरे हैं कठोर वचन सुनकर भगवानऐसा वचन सुनकर भगवान ने कहा तुम्हारा वजन सकते हो रंडी ऐसा कहकर वहां से दूर चले गए कुछ दूर जाकर समुद्र के किनारे बैठ गए डंडी के जाने पर वैश्य ने नित्य करे के बाद जब नाव को उचित उठी देखा तो अचंभा हुआ तथा नाम में बिल पत्ते देख कर मुंह चित हो जमीन पर गिर पड़ा फिर मोर्चा खोलने पर अत्यंत शोक प्रकट करने लगा तब उसका दामाद बोला कि आप शौक ना करें यह दंडी का श्राप है हमें उनकी शरण में चलना चाहिए तभी हमारी मनोकामना पूर्ण होगी दामाद के वचन सुन मंडी के पास चले गए और अत्यंत भक्ति भाव से नमस्कार करके बोला मैंने जो आप सोच रहे थे उसको शमा कर ऐसा कह कर शोकाकुल रोने लगा तब दंडी भगवान भोले हे वर्णिक पुत्र मेरी आज्ञा से बार-बार तुम्हें दुख प्राप्त हुआ है और तू मेरी पूजा से विमुख हुआ साधु बोला हे भगवान आपकी माया से ब्रह्मा जी भी आपके रूप को नहीं जान सकते तब मैं अज्ञानी कैसे जान सकता हूं आप प्रसन्न हुई है मैं सामर्थ्य के अनुसार आपकी पूजा करूंगा मेरी रक्षा करें और पहले के समान मौका में धन भर दे उसके भक्ति युक्त वचन सुनकर पसंद हो उसकी इच्छा अनुसार वर देखकर प्रभु अंतर्ध्यान हो गए तब उन्होंने ना पर आकर देखा कि नाव धन से परिपूर्ण है फिर वह भगवान श्री सत्यनारायण जी का पूजन कर साथियों सहित अपनी नगर को चला जब उसने नगर के निकट पहुंचा दूध को घर भेजा दूध साधु के घर जाकर स्त्री स्त्री को नमस्कार कर कहा कि साधु अपने दमाद सहित नगर के समीप आ गए हैं लीलावती कलावती उस समय भगवान का पूजन कर रही थी ऐसा जादू की स्त्री ने बड़े हर्ष के साथ श्री सत्यनारायण जी का पूजन कर पुत्री से कहा मैं अपने पति के दर्शन को जाती हूं तू कार्य पूर्ण कर आना परंतु कलावती एवं प्रसाद छोड़कर पति के पास चली गई प्रसाद की हत्या के कारण सत्यदेव नष्ट होकर उसके पति को नाम सहित पानी में डुबो दिया कलावती अपने पति को ना देख कर रोती हुई जमीन पर गिर पड़ी इस तरह नौका को डूबा हुआ था तो करने को रोता हुआ देखकर साधु दुखी तो वह बोला हे प्रभु मुझसे या मुझसे मेरे परिवार से जो भूल हुई है उसे क्षमा करो उसके दिन वचन सुनकर सत्यनारायण भगवान प्रसन्न हो गए और आकाशवाणी हुई यह साधु तेरी कन्या मेरे प्रसाद को छोड़ कर आई है इसलिए इसका पता ही अदृश्य हुआ है यदि घर जाकर प्रसाद ग्रहण करके लौटे तो उसे पति अवश्य प्राप्त होगा ऐसी आकाशवाणी सुनकर कलावती ने घर पहुंचकर प्रसाद ग्रहण किया फिर आकर पति के दर्शन किए तत्पश्चात साधु ने बंधु बांधव सहित सत्यनारायण भगवान जी का विधि पूजन किया इस लोक का सुख भोग कर अंत में स्वर्ग लोक को गए
पांचवा अध्याय
सूत जी बोले हे ऋषि मैं और भी कसा कहता हूं ध्यान लगाकर सुनो प्रजा पालन लीन में तुगध्वज नाम का एक राजा था उसने भी भगवान का प्रसाद तैयार कर बहुत दुख पाया था एक समय 1:00 में जाकर वन्य पशुओं को मार कर बड़ के पेड़ के नीचे आया वहां उसने वालों को भक्ति भाव से बंधुओं सहित श्री सत्यनारायण जी का पूजन करते देखा राजा देख कर भी अभिमान वर्ष ना ही वहां गया ना ही नमस्कार किया जब वालों ने भगवान का प्रसाद उसके सामने रखा तो वह प्रचार को त्याग कर अपनी सुंदर नगरी को चला गया वहां उसने अपना सब कुछ नष्ट हुआ पाया तो वह जान गया कि यह सब भगवान का ग्रुप है तब विश्वास का रंग वालों के समीप गया और विधि पूर्वक पूजन कर प्रसाद ग्रहण किया तो श्री सत्यनारायण भगवान जी की कृपा से सब कुछ पहले जैसा हो गया फिर दीर्घकाल तक सुख भोग कर मन्ने उपरांत स्वर्ग लोक को गया जो मनुष्य इस परम दुर्लभ व्रत को करेगा भगवान की कृपा से उसे धन-धान्य की प्राप्ति होगी निर्धन धनी और बंदी बंधन से मुक्त हो जाएगा निर्भय हो जाता है संतान हीरो को संतान प्राप्त होती है तथा सब मनोरथ पूर्ण होकर अंत में बैकुंठ धाम को चला जाता है जिन्होंने पहले इस व्रत को किया है अब उनके दूसरे जन्म की कथा कहता हूं वृद्ध शतानंद ब्राह्मण ने सुदामा का जन्म पाकर मोक्ष को प्राप्त किया उनका मुख्य नाम का राजा दशरथ होकर वैकुंठ धाम को गया साधुनाम के वेश्या ने मोरध्वज बनकर अपने पुत्र को आगे से चीर कर मोक्ष को प्राप्त किया महाराज तुंग ध्वज ने स्वयंभू होकर भगवान में भक्ति युक्त कर्म कर मोक्ष को प्राप्त किया
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