अहोईअष्टमी व्रत की कथा एवं पूजन का शुभ महूर्त

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माता पार्वती के अहोई स्वरूप की पूजा का विधान है। इसीलिए इस तिथि को अहोई अष्टमी के रूप में पूजा जाता है। ज्योतिर्विद पंडित कपिल जोशी ने वताया की इस दिन भारतीय महिलाएं संतान प्राप्ति और संतान की समृद्धि के लिए व्रत करती हैं। इस साल 31 अक्टूबर को अहोई अष्टमी है। आइए, जानते हैं क्या है इस दिन पूजा करने का सही तरीका और शुभ मुहूर्त…
अहोई अष्टमी के दिन यानी 31 अक्टूबर को पूजन का शुभ मुहूर्त शाम 14:55 से 17:39 बजे तक है। इस समय व्रत की कथा सुनकर महिलाएं माता अहोई की पूजा करें। इसके बाद तारे निकलने पर उन्हें जल का अर्घ्य प्रदान करें और फिर भोजन करके व्रत का समापन करें।
अहोई माता की पूजा करने के लिए गाय के घी में हल्दी मिलाकर दीपक तैयार करें, चंदन की धूप करें। देवी पर रोली, हल्दी व केसर चढ़ाएं। चावल की खीर का भोग लगाएं। पूजन के बाद भोग किसी गरीब कन्या को दान देने से सुफल मिलता है। वहीं, जीवन से विपदाएं दूर करने के लिए महादेवी पर पीले कनेर के फूल चढ़ाएं। यथा संभव गरीबों को दान दें या भोजन कराएं।

अहोई अष्टमी व्रत कथा
प्राचीन काल में एक साहूकार के सात बेटे और सात बहुएं और एक बेटी थी। बेटी की भी शादी हो चुकी थी और वह दीपावली पर अपने मायके आई हुई थी। दीपावली की साफ-सफाई के दौरान घर को लीपने के लिए सातों बहुएं अपनी ननद के साथ जंगल से मिट्टी लाने गईं। जंगल में मिट्टी खोदते हुए साहुकार की बेटी के हाथ से साही (मिट्टी में घर बनाकर रहनेवाला जीव) के बच्चे मर जाते हैं। क्योंकि जहां वह खुरपी से मिट्टी खोद रही थी, उस जगह पर साही ने अपना घर बना रखा था, जिसमें उसके सात बच्चे थे। खुरपी लगने से उन बच्चों की मृत्यु हो जाती है।
तभी साही वहां आ जाती है और अपने बच्चों को मरा हुआ देखकर दुख और क्रोध में साहुकार की बेटी को शाप देती है कि जिस तरह मेरे बच्चे मारकर तुमने मुझे नि:संतान कर दिया है, ऐसे ही तुम्हारे बच्चे नहीं होंगे, मैं तुम्हारी कोख बांध दूंगी। साहूकार की बेटी के कोई संतान नहीं थी और उसकी सभी भाभियों के बच्चे थे। इस पर वह अपनी सातों भाभियों से विनती करने लगती है कि मेरी जगह आप अपनी कोख बंधवा लीजिए। लेकिन कोई-सी भाभी इसके लिए तैयार नहीं होती। सबसे छोटी भाभी से अपनी ननद का दुख देखा नहीं जाता और वह उसकी जगह अपनी कोख बंधवा लेती है।
यह भी पढ़ें: यह है अहोई अष्टमी व्रत का महत्व और इससे जुड़ी परंपराएं
घर जाकर उन्हें लगता है कि इस तरह साही का शाप भी हो गया और उनकी ननद की गृहस्थी भी बच गई। लेकिन जिस भाभी ने अपनी कोख बंधवाई थी, कुछ ही दिन में उसके बच्चों की मृत्यु हो जाती है। वह एक ज्ञानी पंडित को बुलाकर इसका कारण पूछती है तो पंडित उसे सुरही गाय की सेवा करने के लिए कहते हैं। वह सुरही गाय की सेवा में पूरे मन से जुट जाती है। इससे खुश होकर सुरही गाय उसे साही के पास ले जाती है।
सुरही गाय साही से विनती करती है कि वह छोटी बहू को अपने शाप से मुक्त कर दे। साही को छोटी बहू के बच्चों की मृत्यु के बारे में सुनकर बहुत दुख होता है, साथ ही वह उसके द्वारा सुरही गाय की सेवा देखकर भी खुश होती है। इसके बाद साही छोटी बहू को अपने शाप से मुक्त कर देती है। फिर सुरही गाय और साही दोनों उसे सौभाग्यवती रहने और संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती हैं। इनके आशीर्वाद से छोटी बहू की सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं और उसे संतान सुख की प्राप्ति होती है।

Comments

Unknown said…
Jai Mata Di 🙏💫
Kapil Joshi said…
JAI MATA KI .MATA AHOIASTAMI AAP PER APNI KIRPA BNAYE RAKHE

Popular posts from this blog

जानिए ! पितृपक्ष में श्राद्ध किस दिन कौन सा श्राद्ध करें ?

जाने किस दिन करें इस नवरात्रि दुर्गा अष्टमी पूजन

What happened in KASHMIR