भारत हम शरमिँदा हैँ देश द्रोही जिँदा हैँ।

आचार्य चाणक्य ने सही कहा था कि विदेशी औरत से उत्पन्न सँतान कभी भी स्वदेश हित औऱ राष्ट्र प्रेम का अनुगामी नहीं होगा।

साज़िश की बू आ रही है,
इन नेताओं के किरदारों से !
लहू हमारा खौल गया,
इनके राष्ट्रविरोधी नारों से !
ख़तरा नहीं है हमको,
बंदूक या किन्हीं हथियारों से !
ख़तरा है सबसे ज़्यादा,
देश में रह रहे गद्दारों से !

भारत हम शरमिँदा हैँ । देश द्रोही जिँदा हैँ।

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